धरती तेरी अनुकम्पा अपरम्पार

 








ब्रह्माण्ड उत्पत्ति के साथ ही परिवर्तनशील, गतिमान और सदा फैल रहा है। आतंरिक सौरमंडल में तारे, छुद्र ग्रह व् उल्कापिंड उत्पन्न हुए जो अकल्पनीय ऊर्जा के स्रोत हैं। इन्हीं में कुछ छोटे छुद्र ग्रह व् उल्कापिंड ठंढे होते गए। इन्हीं में से एक है हमारी धरती। यह ब्रह्माण्ड के विराट रूप में है मात्र एक कण। 


अंतरिक्ष में आस पास बिखरे एक खगोलीय पिंड से निर्मित हुआ चाँद, जो धरती के गुरुत्वाकर्षण के सम्मोहन व् ब्रह्माण्ड की रचना अनुसार पृथ्वी की परिक्रमा में आ गया। यही कारण बना धरती के धुरी पर घूमने का और प्रारम्भ हुआ मौसम का युग। धरती सूर्य की परिक्रमा करने लगा। 

धरती शनैः शनैः ठंडी होती गयी और इसके वायुमंडल तथा जमीन पर पानी के कणों का निर्माण होने लगा। सहस्त्र वर्षों में धरती पर बना तालाब, झील, नदी व् महासागर। साथ ही पनपे घास-पात, पेड़-पौधे आदि। 












इस क्रांतिकारी बदलाव के साथ कई तत्व जैसे- हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन, नाइट्रोजन आदि मिलते मिटते रहे और अंततः जीवों की रचना प्रारम्भ हुई। 

करोड़ों साल की संरचना से जीवन का प्रारम्भ जल में व् थल पर होने लगा। यही बैक्टीरिया के रूप से जाना गया जो जीवन के विभिन्न रूपों का आधार हैं। कालांतर में वैक्टीरिया में निरंतर विकास हुआ जो विभिन्न रूपों में प्रकट हुआ।  


इन्हीं विभिन्न रूपों में समयानुसार विकसित हुआ ज्ञान और कार्यक्षमता जिससे उन्हें उपलब्ध ऊर्जा के इस्तेमाल करने की योग्यता आयी। जीवन के विकसित होने में रफ़्तार आ गयी और लम्बी छलांगें लगाने लगी। 



इस लम्बे विकास क्रम में विनाश भी होते रहे। इससे उत्पत्ति के साथ-साथ कई प्रजातियाँ ख़त्म होती गयीं। धरती के घूर्णन गति, भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोटों के साथ बनता गया कई भूभाग जैसे आज के अफ्रीका, अमेरिका, एशिया आदि। इसके मुख्य कारक बने विभिन्न समुद्र। 
इसी जीवन संघर्ष में योग्यता विजयी होती रही। हमारी प्रकृति स्वयं अपने लिए अनुकूल जीवों का चयन करता रहा। यह प्राकृतिक चयन है -योग्यतम की उत्तरजीविता यानि  सरवाईवल ऑफ़ दी फिटेस्ट। 
भोजन, जीवन और वातावरणीय संघर्ष के साथ -साथ प्राणी के आकार, प्राकृतिक आवास और स्वभाव परिवर्तन उसके जीवन को धरती पर बढ़ाते रहे।

 
प्राणी अपने निरंतर अर्जित ज्ञान वृद्धि, विज्ञान और उसके उपयोग, प्रकृति से मेल मिलाप और धरती के स्वहित हेतु उपयोगों के पश्चात सहस्त्र वर्षों में आज तक पहुंचा है। 

धरती हमारी ठौर है, भरण पोषण दायिनी है ,
अति वंदनीय है और उसकी अपरम्पार अनुकम्पा है। 


नमन 
goforblessings writes on dharti teri anukampa aparampaar 

goforblessings celebrates our dharti. viewers also celebrate it.

Comments

  1. In this glorious history of my earth, I feel humbled and greatly indebted.

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  2. We are blessed that the Earth is so kind and it shelters, protects feeds and allows us to grow.

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  3. The earth bestows plenty in terms of shelter, food, useful minerals etc without asking anything in return. SHE is a giver at all times. We survive only because of HER. We are indebted.

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