नैना देवी मंदिर - आस्था स्थली ( NAINA TEMPLE )
उत्तराखंड नैनीताल में स्थित नैना देवी मंदिर एक आस्था स्थली है। यहाँ वासंतिक और शारदीय नवरात्रों में अनेक श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। सावन में भी भारी संख्या में भक्तगण आते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार नैनीताल में एक स्थल पर महर्षि अत्रि, पुलस्त्य और पुलह ने तपस्या की और मानसरोवर से जल लाकर एक सरोवर का निर्माण किया जिसे "भिऋषि सरोवर" और आजकल "नैनी झील" नाम से जानते हैं। इसी पवित्र झील के एक सिरे पर स्थित है माँ नैना देवी का मंदिर।
मान्यता है कि माँ उमा देवी अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ में अपने पति शिव के अपमान से आहत हो यज्ञ के हवन कुंड में कूद पड़ी और सती हो गयीं। सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर डाल शिव भगवान आकाश मार्ग से चल पड़े। इस यात्रा के दौरान जहाँ सती की बायीं आँख गिरी थी वही स्थान नैना देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह भी मान्यता है कि सती के आँख गिरने से ही नैना झील बनी।
ऐसी मान्यता है कि नैना देवी मंदिर 15 वीं शताब्दी में बना। इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1883 ईo में कराया गया। नैना देवी नैनीताल की कुलदेवी हैं।
नैना देवी परिसर में प्रवेश करने पर दायीं ओर बजरंगबली स्थित हैं। माँ नैना के दर्शन से पूर्व दो सिंहों को देखा जा सकता है।
मंदिर के मुख्य परिसर में तीन प्रतिमाएँ हैं -
माँ नैना देवी मध्य में, बायीं ओर माँ काली और दायीं तरफ गणेश जी। नैना देवी को दो नैनों के माध्यम से दर्शाया गया है।
मुख्य मंदिर के समक्ष तीन विशाल घंटे लगे हैं तथा काले पत्थर से निर्मित सुन्दर शिवलिंग है।
नैना देवी मंदिर में माँ नैना के दर्शन हेतु अनेक श्रद्धालु आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु प्रार्थना करते हैं।
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