आदि शंकराचार्य






आदि शंकराचार्य महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक थे। वे अमूल्य धरोहर व साक्षात भगवान शिव के अवतार हैं। 
उनका जन्म 507 ई.पू. केरल के मालावार क्षेत्र के कालपी नामक स्थान पर हुआ। जन्म से आध्यात्मिक क्षेत्र में रूचि रही जिसके कारण सांसारिक जीवन से मोह नहीं था, अतएव उन्होंने संन्यास ले लिया। समस्त भारत में भ्रमण कर ज्ञान का प्रकाश फैलाया। 
उन्होंने अद्वैत वेदांत का आधार प्रदान किया। उनका उद्देश्य प्रभु की दिव्यता से अवगत कराने के साथ भगवान शिव की शक्ति और उनकी दिव्यता को लोगों तक पहुँचाना था। शंकराचार्य जी के दर्शन को अद्वैत वेदांत कहा जाता है। उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया कि " ब्रह्म सत्य है और जगत माया ।" आत्मा की गति मोक्ष में है। 
सनातन धर्म के विभिन्न विचार धाराओं का एकीकरण किया। वेदांत या उपनिषद में ही हैं दुनिया के समस्त धर्म, विज्ञान और दर्शन। 
सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र, ग्यारह उपनिषदों एवं गीता पर भाष्यों की रचनायें की। साथ ही अन्य ग्रंथों का निर्माण कर वैदिक धर्म और दर्शन को प्रतिष्ठित किया। 
उन्होंने परमेश्वर के विभिन्न रूपों से अवगत, उनसे जुड़ने के तरीकों का वर्णन एवं महत्व बताया। उनके उपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित है। परमात्मा एक ही समय सगुण और निर्गुण दोनों स्वरूपों में हैं। उनके कथित तथ्य और सिद्धांत जिसमें सांसारिक और दिव्य अनुभव का मिलन स्पस्टतः दिखता है। इस प्रकार भक्ति, योग और कर्म का मिलन आनंददायी और सुखद है। 
उनके द्वारा स्थापित चार पवित्र और प्रसिद्ध मठ निम्न हैं -
1.  ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम 
2. श्रृंगेरी पीठ 
3. द्वारिका शारदा पीठ 
4. पुरी गोवर्धन पीठ 
इनपर आसीन सन्यासी शंकराचार्य होते हैं। 
सन 820 ई. में 32 वर्ष की अल्पायु में केदारनाथ के समीप अपने जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर ब्रह्मलोक प्रस्थान कर गए। हर एक को उनके विचारों का अनुसरण कर अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिए। 


निर्वाण षटकमः
NIRVANA SHATAKAMAH

I am not the mind,
The intellect,
The ego or the memory,
I am not the ears, the skin,
The nose or the eyes,
Nor am I the speech,
The hands, or the feet,

I am the
Ever Pure
Blissful
Consciousness;
I am the Auspicious
- Gracious
- Pure One,

I am not the breath,
Nor the five elements,
I am not the matter,
Nor the five sheaths of 
Consciousness,
I am not space, nor earth,
not fire, water or wind,

I am the
Ever Pure
Blissful
Consciousness;
I am the Auspicious
- Gracious
- Pure One,

There is no
Like affinity, attachment
nor hatred / dislike / aversion
in me 
no greed or delusion,
I know no pride
or jealousy,
I am not righteous action / duty,
not wealth
not lust, nor liberation,

I am the
Ever Pure
Blissful
Consciousness;
I am the Auspicious
- Gracious
- Pure One,

No virtue or vice,
no pleasure or pain,
I need no mantras, 
no pilgrimage,
no scriptures or rituals,
I am not 
the experience ( or consumption )
the experienced ( consumed )
nor the experiencer ( consumer ),

I am the
Ever Pure
Blissful
Consciousness;
I am the Auspicious
- Gracious
- Pure One,

I have no death nor its fear,
no caste / creed,
I have no father, no mother,
for I was never born,
I am not a relative, nor a friend,
nor a teacher, nor a student,

I am the
Ever Pure
Blissful
Consciousness;
I am the Auspicious
- Gracious
- Pure One,

I am devoid of duality
( without any variation / form ),
my form is formlessness,
I exist everywhere
( as the underlying substratum of everything ),
pervading all senses,
I am neither attached, 
neither free nor captive,

I am the
Ever Pure
Blissful
Consciousness;
I am the Auspicious
- Gracious
- Pure One.
🙏🙏🙏

goforblessings celebrates noble person adi shankaracharya

goforblessings writes on adi shankaracharya to celebrate the noble person. viewers will respect the noble person and celebrate HIM.

Comments

  1. I bow to the Adi Shankaracharya.

    ReplyDelete
  2. The recitation on Nirvana Shatakam is very good. Sanskrit slokas are excellent. I listened it many times.
    I bow to THE Shankaracharya.

    ReplyDelete
  3. We are blessed that Adi Shankaracharya guided us to live orderly and peaceful lives.

    ReplyDelete

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