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Showing posts from August, 2020

सुजलां सुफलाम् मलयजशीतलां

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    जन्मभूमि का स्थान स्वयं से भी श्रेष्ठ एवं महान है। यह पुण्य क्षेत्र है ; अमल, असीम और त्याग से विकसित। इसका वात्सल्य विभिन्न रूपों में समस्त लोगों पर न्योछावर है। इसकी महत्ता सभी भौतिक सुखों से कहीं अधिक है। अतः इसकी रक्षा एवं सम्मान करना मनुष्यता का परम उत्तरदायित्व है और उसके स्वयं के विकास को चरितार्थ करता है।       जो  भरा  नहीं  है  भावों  में         बहती जिसमें  रस धार नहीं।      ह्रदय  नहीं   वह  पत्थर  है          जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। विभिन्न कलाओं एवं अभिव्यक्तियों से ही  सुजलां   सुफलां   मलयजशीतलां  की पावन धरती पर भगवान आ बसते हैं  नमन  goforblessings writes on sujalaam suphalaam malayajshitalaam  goforblessings celebrates sujalaam suphalaam malayajshitalaam and offers prayer to noble god the father. viewers will also celebrate and bow to the noble god the...

माता वैष्णो देवी

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  पौराणिक कथानुसार माता के तीन मूल रूप -  माता महाकाली  माता महालक्ष्मी  माता महासरस्वती  ने स्वयं के आध्यात्मिक शक्तियों को एकत्रित करके मिलाया। इस परस्पर मिले एक दिव्य रूप में एक तीव्र ज्योति ने स्वरुप लिया जो माँ वैष्णो देवी नाम से समस्त विश्व में सुविख्यात हुईं। वे सद्गुणों, सदाचार की स्थापना, उक्त गुणों की रक्षा एवं प्रचार - प्रसार के लिए इस धरती पर आयीं।  महाकाव्य के अनुसार माँ वैष्णो देवी ने दक्षिण भारत में जन्म लिया। धर्मपरायण और महा गुणी माँ समुद्र किनारे अपने आराध्य देव की तपस्या में लीन हो गयीं।भगवान श्री राम ने उनकी प्रगाढ़ तपस्या से प्रसन्न हो, उनके समक्ष आकर वचन दिया की उनकी दिव्यता की स्तुति सर्व जगत में होगी और वे त्रिकुटा वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी। वे अमरत्व प्राप्त करेंगी।  तत्पश्चात माँ त्रिकुटा की पहाड़ियों पर आ बसीं। ये पहाड़ियाँ आज के केंद्र प्रशासित जम्मू कश्मीर में जम्मू क्षेत्र के कटरा नगर के समीप है।  एक प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी माता का एक परम भक्त श्रीधर के अत्यंत दयनीय ह...

विश्व धरोहर पवित्र महाबोधि मंदिर

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  छठवीं शताब्दी में गौतम बुद्ध आज के बिहार की राजधानी पटना के दक्षिण पूर्व में लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर गया जिले से सटे शहर पहुँचे, जो गंगा जी की सहायक नदी फल्गु के किनारे स्थित है। इस नदी के तट पर एक बोधि पेड़ के नीचे कठिन तपस्या प्रारम्भ की।  गौतम बुद्ध को बैसाख महीने के पूर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई। अतः इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा तथा यह जगह बोध गया के नाम से प्रचलित हुआ। वे स्वयं बुद्ध नाम से विश्व विख्यात हुए।  गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होने के वर्षों पश्चात् महान राजा अशोक बोध गया पहुँचें। गौतम बुद्ध के सारगर्भित उच्चरित प्रवचनों से अभिभूत उनके अनुयायी बन गए तथा महाबोधि मंदिर के साथ ही कई स्मारकों का निर्माण कराये।  महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति बौद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त मूर्ति है। यह बुद्ध की रमणीय शांत मूर्ति, भव्य और सुन्दर है।  बुद्ध की यह ज्ञान भूमि बोध गया आज बौद्धों के सबसे बड़े पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। भव्य महाबोधि मंदिर विश्व धरोहर घोषित है।   रमणीय बोध गया में ही अन्य देशों के मठ...

देवी माँ विंध्यवासिनी

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  विंध्य पर्वत श्रृंखला, मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश के मध्य- पहाड़ियों में पतित पावनी गंगा के कल-कल करती धाराओं के कंठ पर विराजमान एवं अनुपम छटा बिखेरती प्रकृति में माँ विंध्यवासिनी विराजमान हैं।                               विन्ध्येचैवनग - श्रेष्ठे  तवस्थानंहि  शाश्वतम् ।            हे माता ! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं। माँ विंध्यवासिनी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। माँ अलौकिक प्रकाश के साथ यहाँ विराजमान रहती हैं।  माँ विंध्यवासिनी एक ऐसी जागृत शक्तिपीठ हैं जिसका अस्तित्व सृष्टि आरम्भ होने से पूर्व और प्रलय के पश्चात भी रहेगा। अतः इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। इस सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीष से हुआ है।  विंध्याचल निवासिनी देवी लोक हिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महा सरस्वती का रूप धारण करती हैं। वे असुरों का नाश करने वाली भगवती यन्त्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। यहाँ आदिशक्ति देवी के विभि...

सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी

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  परम वंदनीय त्रिदेव के नाम से विदित देवता- ब्रह्मा, विष्णु और महेश में ब्रह्मा जी को  स्वयंभू, चार वेदों के निर्माता एवं सृष्टि के रचनाकार ; भगवान श्री हरी विष्णु को संसार का पालनहार तथा भगवान महेश को सृष्टि का विध्वंशकारी कहा जाता है।   पद्मपुराण के अनुसार सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी एवं उनकी पत्नी सावित्री के सम्बन्ध में निम्न घटनाक्रम का विवरण दिया गया है 👇 देवता ब्रह्मा जी ने जब एक दुष्ट राक्षस को उसके कर्मो के दंडस्वरूप उसका वध किया तभी उनके हाथों से सहसा कमल का पुष्प गिर गया। उसी स्थल को पुष्कर कहा गया, जो अजमेर, राजस्थान में है।  कमल पुष्प के गिरने के पश्चाताप से ग्रसित देवता ब्रह्मा ने इसी स्थान पर यज्ञ का आयोजन प्रारम्भ किया, पर पत्नी सावित्री के समय पर न पहुंचने पर एक ग्वाल बाला से विवाह कर यज्ञ आरम्भ किया। इसी बीच उनकी पत्नी सावित्री पहुँच गयीं और यह देख क्रोधित हो ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि इस संसार में आपका कोई मंदिर नहीं होगा, न ही पूजा।  बाद में, पश्चाताप स्वरुप उन्होंने केवल पुष्कर में हीं कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्मा जी की पूजा...

देवी माँ सरस्वती

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  देवी माँ सरस्वती सतोगुणी महाशक्ति एवं प्रमुख त्रिदेवियों में से एक ब्रह्मा जी के जिह्वा से प्रकट हुईं, अतः वे ब्रह्मा- पुत्री कहलाती हैं। वे स्वरुप, प्रकृति, शक्ति, ब्रह्मज्ञान, विद्या, नृत्य, संगीत, कला आदि की अधिष्ठात्री देवी मानी गयी हैं।  देवी माँ सरस्वती के हाथों में वीणा, वर-मुद्रा पुस्तक एवं माला है तथा वे श्वेत कमल पर विराजित हैं। वे सभी प्रकार की ब्रह्म विद्या, बुद्धि एवं वाक् प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण वे संगीत की अधिष्ठात्री देवी हैं।  ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन 👇                  प्रणो  देवी  सरस्वती  वाजेभिर्वाजिनीवती  धीनामणिभयवतु।    वे परम चेतना हैं। सरस्वती रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हम में जो मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती हैं। इनकी समृद्धि और स्वरुप का वैभव अद्भुत है।  वसंत पंचमी के दिन ब्रह्म विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा सहर्ष मनोयोग से मनाई जाती है। उनकी आराधना से श्रद्धालु को ज्ञा...

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

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  रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग  किवदंती के अनुसार भगवान श्री राम सीता जी को मुक्त करने के लिए लंका पर चढ़ाई करने के पूर्व रावण से युद्ध में सफलता की कामना हेतु तथा उसके पश्चात युद्ध कार्य में सफलता और विजय मिलने पर कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए अपने आराध्य भगवान शिव की आराधना समुद्र के किनारे रेत से निर्मित शिवलिंग के सम्मुख की।  भगवान राम और सीता जी की आराधना से प्रसन्न भगवान शिव स्वयं ज्योति स्वरूप प्रकट हुए और उन्होंने रेत निर्मित लिंग को श्री रामेश्वरम की उपमा दी। यही श्री रामलिंगम भी कहलाता है।  विजयी श्री राम जी ने हनुमान जी से शिवलिंग लाने का अनुरोध किया। पवन-सुत हनुमान जी शिवलिंग लाये जिसे स्थापित कर श्री राम जी ने भगवान शिव की आराधना की। यही रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग नाम से प्रसिद्ध हुआ। छोटे आकार का यह शिवलिंग रामनाथ स्वामी भी कहलाता है। यही विश्वलिंगम भी कहलाता है। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है, पर पूजा दोनों शिवलिंगों की होती है।  किवदंती के अनुसार रामेश्वरम मंदिर परिसर में स्थित कुओं को भगवान श्री राम ने अपने अमोघ बाणों से निर्...

अमरनाथ शिवलिंग

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  प्रमुख तीर्थ स्थल अमरनाथ कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर से 145 कि.मी. दूर स्थित है।  इस प्रमुख देवस्थान पर मान्यता अनुसार भगवान शिव श्रावण मास की पूर्णिमा में आये और यहाँ तपस्या की। देवी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया। भगवान शिव के प्रमुख स्थानों - कैलाश पर्वत, केदारनाथ, काशी, पशुपतिनाथ के साथ है अमरनाथ। अतः इस तीर्थस्थल का विशेष महत्व है।  अमरनाथ में स्थित गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें टपकती रहती हैं जिसकी हिम बूंदों से शिवलिंग का निर्माण होता है, जिसे बर्फानी बाबा कहा जाता है। शिवलिंग को अमरेश्वर भी कहा जाता है।  रक्षाबंधन की पूर्णिमा के दिन छडी मुबारक़ गुफा में बने हिम शिवलिंग के पास स्थापित की जाती है।  अमरनाथ जाने हेतु शिवभक्तों द्वारा यात्रा जुलाई से अगस्त माह के प्रारम्भ तक की जाती है।  हिम शिवलिंग के दर्शन और आराधना करने वाले भक्तों को सुख- शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।  goforblessings writes on amarnat shivling  goforblessings celebrates god the father bhagwan shiv. viewers will worship and celebrate g...

धरती तेरी अनुकम्पा अपरम्पार

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  ब्रह्माण्ड उत्पत्ति के साथ ही परिवर्तनशील, गतिमान और सदा फैल रहा है। आतंरिक सौरमंडल में तारे, छुद्र ग्रह व् उल्कापिंड उत्पन्न हुए जो अकल्पनीय ऊर्जा के स्रोत हैं। इन्हीं में कुछ छोटे छुद्र ग्रह व् उल्कापिंड ठंढे होते गए। इन्हीं में से एक है हमारी धरती। यह ब्रह्माण्ड के विराट रूप में है मात्र एक कण।  अंतरिक्ष में आस पास बिखरे एक खगोलीय पिंड से निर्मित हुआ चाँद, जो धरती के गुरुत्वाकर्षण के सम्मोहन व् ब्रह्माण्ड की रचना अनुसार पृथ्वी की परिक्रमा में आ गया। यही कारण बना धरती के धुरी पर घूमने का और प्रारम्भ हुआ मौसम का युग। धरती सूर्य की परिक्रमा करने लगा।  धरती शनैः शनैः ठंडी होती गयी और इसके वायुमंडल तथा जमीन पर पानी के कणों का निर्माण होने लगा। सहस्त्र वर्षों में धरती पर बना तालाब, झील, नदी व् महासागर। साथ ही पनपे घास-पात, पेड़-पौधे आदि।  इस क्रांतिकारी बदलाव के साथ कई तत्व जैसे- हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन, नाइट्रोजन आदि मिलते मिटते रहे और अंततः जीवों की रचना प्रारम्भ हुई।  करोड़ों साल की संरचना से जीवन का प्रारम्भ जल में व् थल पर होने लगा।...